Saturday, February 23, 2008
तीन प्याले चाय के ...
"अकेला चना भांड नही फोड़ता " ये कहावत बहुत हिन् प्रसिद्ध है , पर अगर मन में हो लगन और कार्य के प्रति निष्ठा तो क्या नहीं हो सकता है....... ऐसा हिन् कुछ हमारे एक अमेरकी मित्र Gorge mortenson ने कर दिखलाया । उनके शाहासिक कारनामे का जिक्र है उनकी लिखी पुस्तक Three Cups of Tea (तीन प्याले चाय के ... ) में ।
mortenson एक पर्वतारोही थे । सन १९९३ में mortenson अपने साथियों के साथ काराकोरम की दुर्गम घाटियों में पर्वतारोहण करने आए थे । इस चढाई के दौरान वो काफी कमजोर हो गए फ़िर उनकी देखभाल वहाँ के गाँव वालों ने की । तो जब mortenson सवस्थ हो गए तो जाने से पहले उन्होंने गाँव के मुखिया से पूछा की बोलो हम आपके लिए क्या कर सकते हैं? तो गाँव के मुखिया ने कहा की यहाँ कोई पढ़ाई-लिखाई का साधन नहीं है, अगर आप यहाँ विद्यालय खोल दे तो आपकी बड़ी कृपा होगी । और mortenson ने जाने के बाद अपना वादा निभाया और पैसे इकठ्ठा कर के उस क्षेत्र में विद्यालय खोला वो भी १ नहीं २ नहीं पूरे ६५ विद्यालय .........
अभी उनकी संस्था Central Asia Institute पाकिस्तान और अफगानिस्तान में महिलाओं के उत्थान के लिए भी कार्य कर रही है । ये भी तो एक तरीका हो सकता है आतंकवाद से लड़ने का, आप क्या कहते हैं ?
और ये हैं mortenson बच्चों के साथ .....
एक विदेशी इतनी दूर से आके इतना काम कर सकता है तो क्या हम अपने देश के बच्चों के लिए कुछ नहीं कर सकते ?
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