कृष्ण चंदर के लोकप्रिय उपन्यास "एक गधे की आत्मकथा " में आदमी की भाषा में बोलने वाले एक गधे के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं पर करारा व्यंग्य किया गया है । इस उपन्यास के विचित्र संसार में सरकारी दफ्तरों के निठल्ले आफिसर, लाइसेंस के चक्कर में घूमने वाले व्यवसायी, चुनाव के जोड़-तोड़ में लगे नेता, साहित्य के मठाधीश , माडर्न आर्ट के नम पर जनता को चक्कर में डालने वाले कलाकार, अपने ही सुर से मोहित संगीतज्ञ, सौंदर्य के नम पर भोंदेपन को अपनाने वाली निठ्ल्ली महिलाएँ मानो कार्टून कि शक्ल में चलते फिरते नजर आते हैं ।
एक बहुत हिन् बेहतरीन पुस्तक है, एक बार अवश्य हिन् पढ़ें । वर्तमान परिवेश के बारे में एकदम सटीक चित्रण है इस पुस्तक में। कहानी के अंत में थोड़ी पकड़ ढीली हो गयी है फिर भी बार - बार पढने लायक पुस्तक हैं ।
Sunday, August 19, 2007
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